बड़ी मेहनत के बाद मैंने *hotel ki* नौकरी पायी है,
नौकरी में आया तो जाना, यहाँ एक तरफ कुआँ तो दूसरी तरफ खाई है।

*जहाँ कदम कदम पर ज़ि ल्लत, और घड़ी घड़ी पर ताने हैं*

यहाँ मुझे अपनी ज़िन्दगी के कई साल बिताने हैं।

अपनी गलती ना हो लेकिन क्षमा याचना हेतु हाथ फैलाने हैं.

फ़िर भी बात-बात पे चार्जशीट और Punishment ही पाने हैं.

जानता हूँ ये 'अग्निपथ' है, फिर भी मैं चलने वाला हूँ,

क्योंकि मैं *hotel ki* नौकरी वाला हूँ।

जहाँ एक तरफ मुझे Management की, और दूसरी तरफ पब्लिक की भी सुननी है,

यानी मुझे दो में से एक नहीं, बल्कि दोनों राह चुननी हैं।

ड्यूटी अगर लेट हुयी तो manager और chef चिल्लाते हैं.

गलती चाहे किसी भी की भी हो सजा तो हम ही पाते हैं.

दो नावों पे सवार हूँ फिर भी सफ़र पूरा करने वाला हूँ,

क्योंकि मैं *hotel ki* नौकरी वाला हूँ।

आसान नहीं है सबको एक साथ खुश रख पाना,

परिवार के साथ वक़्त बिताना, और *hotel*में job बचाना।

परिवार के साथ बमुश्किल कुछ वक़्त ही बिता पाता हूँ,

घर जैसे कोई मुसाफिर खाना हो, वहां तो बस आता और जाता हूँ।

फिर भी हर मोड़ पर मैं अपनी ज़िम्मेदारी पूरी करने वाला हूँ,

क्योंकि मैं *hotel ki* नौकरी वाला हूँ

Promotion, incriment की बात पर, हमें सालो लटकाया जाता है,

हक़ की बात करने पर ठेंगा दिखलाया जाता है।

ये एक लड़ाई है, इसमें सबको साथ लेकर चलने वाला हूँ,

क्योंकि मै *hotel ki* नौकरी वाला  हूँ।

देश समाज में  Senior नौकरों के आरामपरस्त होने का बड़ा बवाल है

छुट्टी मिली ना घर जा सके, Duty में ही ईद-दिवाली-क्रिसमस मनाने का अजब कमाल है।

टिफ़िन से टिफ़िन जब मिलते हैं, तो एक नया ही ज़ायका बन जाता है,

खुद के बनाये खाने में, और घर के खाने में फ़र्क़ साफ़ नज़र आता है।

मजबूरी ने इतना कुछ सिखाया, आगे भी बहुत कुछ सीखने वाला हूँ,

क्योंकि मैं *hotel ki* नौकरी वाला हूँ।

 लोग समझते है कि बड़ा मजा करते है, *hotel ki* नौकरी में

अब उन्हें कौन समझाए कि hotel कर्मी के लिए Company के पास सिर्फ वादे है,


सबको मैं बदल नहीं सकता, इसलिए अब ख़ुद को बदलने वाला हूँ,

क्योंकि मैं *hotel ki* नौकरी  वाला हूँ।

*ये कविता मेरे समस्त hotel कर्मियो को समर्पित है।*.......

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